गायब होती परछाई — एक रहस्य कहानी

गायब होती परछाई — एक रहस्य कहानी

परछाई

 

शहर के किनारे बसा शांत कस्बा धूपनगर अपनी साधारण ज़िंदगी के लिए जाना जाता था। यहाँ शाम ढलते ही सड़कें खाली हो जातीं, और लोग जल्दी घर लौट आते। लेकिन पिछले कुछ हफ्तों से इस झरने पर एक अजीब-सा डर छा गया था—लोगों की परछाइयाँ अचानक गायब हो जाती थीं।

पहली घटना तब हुई जब अनन्या, जो स्थानीय स्कूल में पढ़ाती थी, सुबह घर से निकली और सड़क पर चलते हुए उसने देखा कि उसकी परछाई ज़मीन पर दिखाई ही नहीं दे रही। सूरज पूरी तरह चमक रहा था, लेकिन उसके पैरों की छाया नहीं थी।

वह घबरा गई। उसने कई बार इधर-उधर देखा, घूमकर देखा, पैर बढ़े देखा, लेकिन कोई छाया नहीं।

“ये कैसे हो सकता है?” वह खुद से बुदबुदाई।

लेकिन यह कहानी सिर्फ उसकी नहीं थी। जल्द ही कई लोगों ने शिकायत की कि उनकी छाया कभी-कभी दिखती ही नहीं, और कुछ की तो पूरी तरह गायब हो गई थी। लोग इसे अपशकुन मिले लगे। झरना में चर्चाएँ पहुँच पहुँचतीं—

“कोई जादूगर आया है।”

“कहीं कोई मनहूस आत्मा तो नहीं?”

“ये कोई बीमारी है क्या?”

झारखंड के बुजुर्ग रघुनाथ चाचा कहते थे, “छाया इंसान का साथी होती है। अगर वो गायब होने लगे तो मतलब कुछ बहुत गलत हो रहा है।”

अनन्या को यह रहस्य समझने की तीव्र इच्छा हुई। वह हमेशा से तर्कशील और हिम्मतवाली थी। उसने अपने दोस्त अर्जुन, जो एक स्थानीय पत्रकार था, को भी यह बात बताई। अर्जुन उत्साहित हो गया—“ये तो बड़ी खबर है! हमें इसका सच पता करना ही होगा।”

दोनों ने मिलकर छाया गायब होने की घटनाओं की जांच शुरू की। सबसे पहले उन्होंने उन लोगों से बात की आवश्यकताओं परछाइयाँ पहले गायब हुई थीं। एक युवक ने बताया,

“मेरी छाया सुबह गायब हो जाती थी, लेकिन शाम होते-होते फिर लौट आती थी।”

एक और महिला बोली,

“मेरी छाया पर पिछले कुछ समय से अजीब धुँधलापन रहता था, जैसे कोई उसे मिटा रहा हो।”

सबकी बातों में एक बात सामान्य थी—

हर घटना शाम ढलने से कुछ मिनट पहले होती थी।

यह बात अनन्या को और उलझाने लगी। आखिर ऐसा क्या था उस समय में?

रहस्य के सूत्र

अर्जुन ने अपने पुराने नोट्स निकाले। कुछ साल पहले इस झरने में एक वैज्ञानिक रहता था—डॉ. ईशान मेहरा। उनकी लैब झरने के बाहर पहाड़ी के किनारे थी। कहा जाता है कि वे रोशनी और छाया पर शोध करते थे और एक बड़ा प्रयोग करते-करते अचानक गायब हो गए। उस घटना के बाद से उनकी लैब बंद पड़ी थी।

अर्जुन बोला,

“मुझे लगता है शुरुआत हमें दबा से करनी चाहिए।”

अनन्या को भी लगा कि यह कोई संयोग नहीं। दोनों उसी शाम पहाड़ी की तरफ निकल पड़े।

परित्यक्त लैब

जैसे-जैसे वे लैब के करीब पहुंचे, हवा ठंडी होती गई। जगह बिल्कुल सुनसान थी। टूटी गलियों से हवा अंदर जाकर अजीब-अजीब आवाज़ें निकाल रही थी।

अनन्या ने टॉर्च जलाई और दोनों अंदर गए। कमरे में पुराने कागज़, मशीनों के हिस्से और नोटबुक बिखरी हुई थीं। एक मशीन की दीवार के पास रखी थी, जिसमें एक बड़ा गोल शीशा लगा था।

अर्जुन ने मशीन के पास एक पुरानी नोटबुक देखी। उस पर लिखा था—

“छाया एनर्जी निष्कर्षण सिस्टम – डॉ. ईशान मेहरा”

अनन्या ने नोटबुक ताई। उसमें दर्ज था कि डॉ. ईशान छाया की एनर्जी को इकट्ठा करने का प्रयास कर रहे थे, ताकि बिजली रहित इलाकों में रोशनी पैदा की जा सके। उनकी नोटबुक थी कि छाया सिर्फ अंधेरा नहीं, बल्कि एक एनर्जी रूप है।

लेकिन नोटबुक का आखिरी पन्ना डराने वाला था। उसमें लिखा था—

“प्रयोग खतरनाक हो चुका है। छाया निकालने से इंसान की एनर्जी भी कम होती है। अगर मशीन अपने आप एक्टिव हो गई, तो आसपास के लोगों की छाया खींच लेगी।”

अनन्या और अर्जुन घबरा गए।

यानी छाया गायब होने का रहस्य इसी मशीन से जुड़ा था।

तभी कमरे के एक कोने से रोशनी नीली रोशनी चमकी। मशीन अपने आप चालू होने लगी। गोल शीशे के भीतर मुड़ी हुई धुंध उभर आई।

अनन्या ने चीखी,

“अर्जुन! ये तो लोगों की छाया खींच रही है!”

उन्होंने नोटबुक में पढ़ा कि मशीन को बंद करने का एक ही तरीका है—

मुख्य एनर्जी वाल्व को तोड़ देना।

अंधेरे के बीच दौड़

मशीन अब जोर-जोर से गूंजने लगी। उसकी रोशनी कमरे की दीवारों पर फैलकर अजीब परछाइयाँ बना रही थी। दोनों ने भागकर उस वाल्व को ढँकने की कोशिश की, लेकिन रोशनी इतनी तेज थी कि कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा था।

अर्जुन ने चिल्लाते हुए कहा,

“अनन्या, उधर! लाल हैंडल दिख रहा है!”

दोनों उसकी तरफ दौड़े, लेकिन जैसे ही वे करीब पहुँचे, मशीन से निकली हवा की तेज़ लहरों ने उन्हें पीछे धकेल दिया। ऐसा लग रहा था जैसे मशीन उन्हें आगे बढ़ने नहीं देना चाहती।

अनन्या ने अपनी पूरी ताकत बढ़ाई और आगे बढ़ाई। उसने एक पत्थर उठाया और वाल्व पर जोर से दे मारा। एक धातु-सी आवाज़ आई, फिर मशीन की रोशनी अचानक बुझ गई।

कमरा शांत हो गया।

कुछ सेकंड तक दोनों वहीं खड़े रहे, साँसें तेज़ चल रही थीं। फिर अर्जुन ने कहा,

“मुझे लगता है… यह अब बंद हो गई।”

सच सामने आता है

अगले दिन पूरे झरना में खबर फैल गई कि रहस्यमयी मशीन मिल चुकी है और उसे बंद कर दिया गया है। धीरे-धीरे जिन लोगों की छाया गायब थी, उनकी छाया लौट आई।

धूपनगर फिर से सामान्य होने लगा।

लोग अनन्या और अर्जुन की बहादुरी की बातें करने लगे।

अनन्या ने आखिरी बार उस पहाड़ी से शहर को देखा और मन ही मन सोचा—

“कभी-कभी रहस्य विज्ञान में छिपे होते हैं, डर में नहीं। इसे समझने के लिए बस हिम्मत चाहिए।”

पात्र की तालिका

पात्रकहानी में भूमिकाविवरण
अनन्यामुख्य पात्रसाहसी, तर्कशील अध्यापिका जो रहस्य सुलझाती है।
अर्जुनसह-पात्रस्थानीय पत्रकार, अनन्या का दोस्त और जांच में साथी।
रघुनाथ चाचादिशानिर्देश पात्रझरना के बुजुर्ग, जो छाया के महत्व पर चेतावनी देते हैं।
डॉ. ईशान मेहरापृष्ठभूमि का रहस्यमय वैज्ञानिकछाया ऊर्जा पर प्रयोग करने वाला वैज्ञानिक, गायब लेकिन उसकी मशीन ही समस्या का कारण।
झरना के लोगसामाजिक वातावरणआपको छाया गायब होती है और कहानी में रहस्य पैकेट है।

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