पुराने किले की आखिरी पुकार

धुंध से ढकी पहाड़ियों के बीच एक पुराना, शायद किला सदियों से खड़ा था—राजगढ़ किला। लोगों का कहना था कि वहां रात के समय अजीब आवाजें गूंजती हैं—कभी कराहन की, कभी किसी के पुकारने की। गाँव वाले उस जगह को “अंतिम पुकार का किला” कहते थे। सालों से कोई भी उस किले के अंदर जाने की हिम्मत नहीं करता था।
कहानी शुरू होती है आरव से—एक युवा पत्रकार, जिसे रहस्य और भूली-बिसरी कहानियों को खोजने का बड़ा शौक था। उसे एक दिन एक पुरानी डायरी मिली, जिसमें राजगढ़ किले के बारे में कुछ अस्पष्ट लिखी थी—“किले में छिपा सच, मुक्त होने की पुकार।” यह वाक्य उसके मन में बस गया। उसने तय किया कि वह इस किले की सच्चाई जानकर ही मानेगा।
जब आरव राजगढ़ पहुँचा, तो गाँव वाले उसे देखकर चिंतित हो उठना। लतिका, गाँव की एक बुजुर्ग महिला, ने उसे चेतावनी देते हुए कहा, “बेटा, वहाँ मत जाना… उस किले में कोई है, जो वर्षों से मुक्ति की तलाश में है। हर रात उसकी पुकार से पत्थर तक कांप उठते हैं।”
पर आरव ने मन बना लिया था। वह डरने वाला नहीं था।
शाम ढलते ही वह किले की ओर बढ़ा। रास्ता सुनसान था, पेड़ हवा में कराहते से लग रहे थे। किले के पास पहुँचकर उसे महसूस हुआ कि तापमान अचानक नीचे चला गया है। जैसे हवा में कोई अदृश्य ठंडक तैर रही हो।
किले का मुख्य द्वार आधा टूटा हुआ था, लकड़ी गल चुकी थी। अंदर कदम रखा ही धूल और मिट्टी की गंध ने उसका स्वागत किया। दीवारों पर उखड़ी पेंटिंगें, टूटी तलवारें और मकड़ी के जाले किसी बीते युग की कहानी कह रहे थे।
आरव इधर-उधर खड़ी हुए पुराने सिंहासन कक्ष तक पहुँचा। तब अचानक उसने सुना—
“कोई है? मेरी पुकार सुने…”
आवाज़ इतनी धीमी थी कि लग रहा था जैसे मिल खुद बोल रही हो।
आरव रुक गया। दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं, लेकिन फिर भी उसने हिम्मत जुटाई और आवाज़ की दिशा में जाने लगा।
किले के पिछले हिस्से में एक पुरानी भूमिगत सुरंग थी, जिसके बारे में शायद ही किसी को पता था। आरव उसी तरफ बढ़ाया। नीचे उतरते हुए एक मशाल जलाकर उसने रास्ता रोशन किया। सुरंग में अंधेरा इतना गहरा था कि हर कदम डर को बढ़ा रहा था।
अचानक उसने एक छाया को हिलते देखा। वह चौंक गया और मशाल उस दिशा में घुमाई।
एक स्त्री का धुंधला-सा रूप उसके सामने खड़ा था—सफेद लिबास, उदास चेहरे और चेहरे पर किसी गहरी पीड़ा के निशान।
वह बोली, “मैं राजकुमारी वैदेही हूँ… दशकों से इस किले में कैद हूँ। तुम्हें ही मेरी कहानी सुनी होगी… तब मुझे मुक्ति मिलेगी।”
आरव स्तब्ध था। उसने खुद को संभाल और कहा, “मैं आपकी कहानी सुन आया हूँ। सच जानना चाहता हूँ।”
वैदेही ने धीरे-धीरे बताना शुरू किया—
“बहुत साल पहले राजगढ़ राज्य पर मेरे पिता का शासन था। मैं उनकी इकलौती बेटी थी। किले में एक सैनिक था—सेनापति भीमराज। यौगिकों ने उसकी आकृति अंधी कर खड़ी की। उसने सत्ता पाने की कोशिश में मेरे पिता को धोखा दिया। किले पर कब्जा करने के लिए उसने साजिश रची और मुझे कैद कर लिया। उसी संघर्ष में मेरी मौत हो गई… लेकिन मेरी आत्मा इस किले की दीवारों में बंध गई। मैं तब तक मुक्त नहीं हो सकती जब तक सच दुनिया के सामने नहीं आता।”
आरव ने पूछा, “मैं आपकी मदद कैसे कर सकता हूँ?”
वैदेही बोली, “इस किले में एक डॉक्यूमेंट है—मेरे पिता द्वारा लिखा गया अंतिम पत्र। उसमें भीमराज की साजिश का पूरा सच है। उसे दुनिया तक पहुँचाओ… यही मेरी अंतिम पुकार है।”
आरव ने उस डॉक्यूमेंट को ढँकने के लिए सुरंग में खोजबीन शुरू की। कुछ देर बाद उसे एक पत्थर की दीवार के पीछे छिपा पुराना लोहे का संदूक मिला। उसमें वही पत्र था—धूल से भरा, पर अक्षर साफ़ दिखाई दे रहे थे।
पत्र में लिखा था:
“मेरी बेटी वैदेही सत्यनिष्ठ है। भीमराज के कपट से सावधान रहना। यदि यह पत्र मिले तो जान लेना कि मेरी मौत एक षड्यंत्र थी।”
आरव ने पत्र वैदेही को दिखाया। उसकी आँखों में शांति उतर आई।
वह बोली, “अब मेरा काम पूरा हुआ। अब मैं जा सकती हूँ…”
धीरे-धीरे उसका रूप धुंध में बदला हुआ लगा।
“धन्यवाद… मेरी अंतिम पुकार सुनने के लिए…”
और वज़नदार खामोशी पूरे किले में फैल गई।
अगले दिन आरव ने वह पत्र गाँव और प्रशासन को सौंपा। राजगढ़ किले में हुए कपट की सच्चाई सबके सामने आ गई। भीमराज के नाम पर लगाया गया स्मारक हटा दिया गया और वैदेही के सम्मान में एक स्मृति-चिन्ह बनाया गया।
आरव जब किले से विदा ले रहा था, तो उसे लगा जैसे हवा में एक मंद मुस्कान तैर रही हो… मनो कोई कह रहा हो—
“अब मैं मुक्त हूँ।”
और इसी के साथ खत्म हुई पुराने किले की वह कहानी, जो सालों से धुंध, डर और रहस्य में छिपी थी—अब सच सबके सामने था।
आचरण की तालिका
| पत्र | भूमिका | कहानी में कार्य / महत्व |
|---|---|---|
| आरव | युवा पत्रकार | किले के रहस्य की खोज करता है, वैदेही की सच्चाई दुनिया तक पहुँचाता है। |
| लतिका | गाँव की बुजुर्ग महिला | आरव को किले के खतरे के बारे में चेतावनी देती है, स्थानीय बुजुर्गों को संबोधित है। |
| राजकुमारी वैदेही | किले की आत्मा / मुख्य रहस्य | अपनी मौत और भीमराज की साजिश का सच बताती है, मुक्ति की प्रतीक्षा करती है। |
| सेनापति भीमराज | विरोधी चरित्र | सत्ता की तेज़ी में राजघराने के साथ धोखाधड़ी करता है, वैदेही को कैद करता है। |
| राजा (वैदेही के पिता) | राज्य के शासक | उनकी मौत भीमराज की साजिश का हिस्सा थी; उनका अंतिम पत्र ही पूरे सच की कुंजी है। |