मृत गन्ने का खेल – एक रहस्यकथा

मृत गन्ने का खेल – एक रहस्यकथा

रहस्यकथा

शांत, घने जंगलों से घिरे छोटे से कस्बे सीतागंज में लोग सामान्य-सी ज़िंदगी जीते थे—सुबह खेतों की गूंज, दोपहर बाज़ार की हलचल और रात को चिरस्थायी खामोशी। लेकिन इस शांति के भीतर एक रहस्य ऐसा भी था जिसने खेतों की नींद छीन लीं। यह कहानी है “मृत गन्ने का खेल” की—एक ऐसा खेल जो किसी ने शुरू नहीं किया, मगर हर किसी को अपनी गिरफ़्त में ले गया।

कहानी की शुरुआत होती है एक पुराने, शायद डाकघर से, जिसे लोग “भूतिया कोठी” कहते थे। यहाँ कई सालों से कोई चिट्ठी नहीं आती थी। डाकघर का अकेला कर्मचारी, रघुवीर, रोज़ सुबह उसकी सफाई करता और लकड़ी की खिड़कियाँ ठीक करता। वह मानता था कि चाहे लोग चिट्ठियाँ लिखें या न लिखें, डाकघर की आत्मा उसकी सेवा में है।

एक सर्द शाम को, जब सूरज छिप के पीछे खो रहा था, रघुवीर को डाकघर के कोने में लिफ़ाफ़ों का एक ढेर मिला—धूल से भरा, पर अजीब तौर पर उनकी मोहरें चमक रही थीं। उन चिट्ठियों पर भेजने और पाने वाले का नाम तो था, लेकिन कोई पता नहीं। सिर्फ एक अनोखा निशान—।

रघुवीर उल गया। उसने ऐसी चिट्ठियाँ पहले कभी नहीं देखी थीं। लेकिन उसकी हैरानी तब और बढ़ गई जब उसने पहली चिट्ठी खोली। उसके अंदर लिखा था:

“अगर यह पत्र तुम्हारे हाथ में है, तो खेल शुरू हो चुका है। अगले तीन दिन में सच सामने लाना, वरना यह खेल तुम्हें भी निगल जाएगा।”

रघुवीर ने घबराकर चिट्ठी को जेब में रख लिया और तुरंत घर चला गया। लेकिन वह जानता था कि बात दब नहीं रुकेगी।

रात का धप्पा

उस रात रघुवीर सो नहीं पाया। आधी रात के करीब दरवाज़े पर दस्तक हुई। जब उसने दरवाज़ा खोला, तो वहाँ कोई नहीं था—बस वही निशान ” लाल पाने से उसके दरवाज़े पर बना हुआ था। अब उसके मन में डर नहीं, बल्कि बेचैनी और जिज्ञासा थी। आखिर कौन खेल रहा था यह खेल?

रघुवीर ने अगली सुबह घुमाने के स्कूल टीचर नैना देवी से मददमाँगी। नैना देवी अपनी तेज़ बुद्धि और शांत स्वभाव के लिए जानी जाती थीं। चिट्ठियों की बात सुनकर उन्होंने तुरंत सोचा कि यह कोई पुरानी घटना से जुड़ा मामला है।

उन्होंने कहा,

“रघुवीर, कोई संख्या नहीं… शायद किसी पुराने केस का कोड भी हो सकता है!”

दोनों झरना की लाइब्रेरी पहुँचे, जहाँ पुराने रिकॉर्ड पीली होती सिकुड़न में बंद पड़े थे। घंटों खोजबीन के बाद उन्हें एक दिलचस्प फ़ाइल मिली —

“प्रोजेक्ट”

यह फ़ाइल 15 साल पुरानी थी। इसमें लिखा था कि झरना के पास की ऊँचाई में एक रहस्यमय वैज्ञानिक प्रयोग हुआ था। उस प्रयोग में कई लोग शामिल थे, और अचानक एक दिन पूरा प्रोजेक्ट बंद कर दिया गया। कोई आधिकारिक रिपोर्ट नहीं, कोई पूछताछ नहीं, सिर्फ चुप्पी।

नैना ने पन्नों को पलटते हुए कहा,

“कहीं ये चिट्ठियाँ उसी प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों की तो नहीं?”

रघुवीर ने अगली चिट्ठी खोली। उसमें बस एक नाम लिखा था:

“शशांक मेहरा — अंतिम गवाह”

इसके नीचे एक वाक्य—

“सच तक पहुँचो, वरना पत्र तुम्हें रास्ता दिखा देंगे…”

शशांक की तलाश

शशांक मेहरा घुमाव से करीब 8 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर अकेले रहता था। दोनों तुरंत वहाँ पहुँचे। घर के बाहर सन्नाटा था। दरवाज़ा खुला हुआ था, लेकिन अंदर कोई नहीं। कमरे में सिर्फ एक लकड़ी की मेज़ और उस पर रखा एक धूल भरा रेडियो।

अचानक रेडियो अपने आप चालू हो गया और एक फटी-फूटी आवाज़ सुनाई दी—

“खेल खत्म नहीं हुआ… पत्र अभी और आएँगे…”

रघुवीर डर से पीछे हट गया। नैना ने रेडियो को चालू किया तो उसके नीचे एक लिफ़ाफ़ा मिला—

श्रृंग वही ”।

चिट्ठी में लिखा था:

“जो जान गया, वह बच नहीं पाया। शशांक ने भी कोशिश की… अब तुम्हारे मोड़ है।”

दोनों समझ गए कि शशांक गायब है और कोई उन्हें खेल की अगली चाल दिखा रहा है।

सच्चाई के करीब

नैना और रघुवीर ने सुरागों को जोड़ते हुए यह समझा कि किसी ने खास पुराने प्रोजेक्ट की सच्चाई छिपाई है। चिट्ठियों के ज़रिए वो व्यक्ति यह सुनिश्चित कर रहा था कि कोई सच तक पहुँच जाए।

तीसरी चिट्ठी पोस्ट में मिली। उसमें एक नक्शा था। नक्शा पहाड़ी के एक परित्यक्त बंकर की ओर संकेत करता था—वही स्थान जहाँ प्रोजेक्ट चलाया गया था।

जब दोनों वहाँ पहुँचे, तो बंकर का दरवाज़ा आधा खुला था। भीतर घुसते ही उन्हें जंग लगे मशीनें और कागज़ों का ढेर दिखा। पर सबसे चौंकाने वाली चीज़ थी—एक पुरानी रिकॉर्डिंग मशीन।

नैना ने प्ले बटन दबाएँ।

रिकॉर्डिंग में शशांक की आवाज़ थी—

“अगर कोई यह सुन रहा है, तो जान लें… सिर्फ़ एक वैज्ञानिक प्रयोग नहीं था, बल्कि लोगों पर मानसिक नियंत्रण का परीक्षण था। हमने इसे रोकने की कोशिश की, लेकिन कुछ लोग चाहते थे कि यह चला रहे…”

आवाज़ अचानक बंद हो गई।

अब रघुवीर को समझ आया कि चिट्ठियाँ भेजने वाला कौन हो सकता है। शायद शशांक खुद ही चिट्ठियाँ भेज रहा था ताकि कोई उसकी अधूरी लड़ाई को पूरा कर सके। पर वह कहाँ गया?

अंतिम पत्र — और अंतिम सच

बंकर से बाहर आते ही रघुवीर को चौथी और अंतिम चिट्ठी मिली। इसमें सिर्फ एक वाक्य था—

“लौट जाओ… खेल खत्म हुआ।”

नैना ने चिट्ठी को ध्यान से पढ़ा और बोली,

“रघुवीर, यह खेल डराने के लिए नहीं था… यह चेतावनी थी। किसी ने यह सुनिश्चित किया कि सच्चाई दोबारा दबाई न जाए। अब हमने इसे उजागर कर दिया है।”

पात्र की तालिका

पत्र का नामकहानी में भूमिकाविवरण / काम
रघुवीरमुख्य पात्रडाक का कर्मचारी, जिसे रहस्यमय “मृत पत्र” मिलते हैं। सच की खोज शुरू करता है।
नैना देवीसह-नायिकास्कूल की अध्यापिका, तेज दिमाग। पहेली सुलझाने में रघुवीर की मदद करती है।
शशांक मेहरागायब गवाहप्रोजेक्ट से जुड़े अंतिम व्यक्ति। महत्वपूर्ण सुराग छोड़कर गायब।
अज्ञात पत्र-भेजने वालारहस्य का केंद्रचिट्ठियाँ भेजकर कहानी को आगे बढ़ाता है। असल में पहचान अस्पष्ट।
सीतागंज के लोगपृष्ठभूमि पात्रघाट के निवासी, जिनके बीच यह रहस्य फैला हुआ है।

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