रहस्यमयी हवेली से चलने का सफ़र — एक रोमांचक कहानी

शहर के किनारे पर एक पुरानी, टूटी-फूटी हवेली खड़ी थी। लोग कहते थे कि वहाँ से अक्सर अजीब आवाज़ें आती हैं—कभी किसी के घूमने की आहट, कभी किसी के रोने की धीमी-सी आवाज़। पर असली सच किसी को नहीं पता था।
इस शहर में बारह साल का आरव रहता था, जिसे रोमांचक जगह की खोज करना बेहद पसंद था। मगर उसे अंदाज़ा नहीं था कि एक दिन उसकी ये आदत उसे किस मुसीबत में डाल देगी।
पहला दिन — हवेली का रहस्य
एक शाम आरव के दोस्तों ने उसे चुनौती दी कि वह पुरानी हवेली के अंदर जाकर दिखाए।
आरव को डर तो लगा, लेकिन उसने चुनौती स्वीकार कर ली।
वह अपने साथ सिर्फ एक टॉर्च और एक छोटा-सा बैग लेकर हवेली के अंदर चला गया।
जैसे ही उसने दरवाज़ा धक्का देकर खोला, वह चीं-चीं की आवाज़ करता हुआ खुला और उसके पीछे अपने-आप बंद हो गया।
आरव घबरा गया, लेकिन हिम्मत करके टॉर्च चालू की और धीरे-धीरे अंदर बढ़ाया।
हवेली के अंदर धूल की मोटी परत और दीवारों पर टंगी पुरानी तस्वीरें थीं। उन तस्वीरों में दिख रहे लोग कुछ अजीब-से लग रहे थे—जैसे उनकी आंखें अभी भी किसी को देख रही हों।
दीवार के पीछे की आवाज़
जब वह दालान से उठकर आगे बढ़ा, उसे एक कमरे की दीवार के पीछे से धीमी-सी आवाज़ सुनाई दी।
जैसे कोई मदद के लिए पुकार रहा हो।
आरव ने दीवार पर हाथ रखा और धीरे-धीरे उसे जगाया।
अचानक उस दीवार का एक हिस्सा घूम गया और उसके सामने एक छिपा हुआ गलियारा खुल गया।
दीवारों से ठंडी हवा आ रही थी और अंदर घुप्प अंधेरा था।
आरव ने सोचा कि शायद कोई फंसा हुआ है और उसे मदद की ज़रूरत है।
उसी सोच के साथ वह अंदर चला गया।
रहस्यमयी कमरा और डायरी
गलियारा खत्म होते ही एक छोटा-सा कमरा था।
कमरे के बीच में एक पुरानी टेबल और उस पर एक मोटी, काली किताब पड़ी थी।
आरव ने किताब ताई। यह डायरी थी—हवेली के मालिक “महेंद्र प्रताप” की।
डायरी में लिखा था कि सालों पहले हवेली में चोरी हुई थी। किसी ने उनकी कीमती “नीली मणि” चुरा ली थी।
चोर को पकड़ने की कोशिश में हवेली में एक बड़ा हादसा हुआ और तभी से हवेली डरावनी मानी जाने लगी।
लेकिन डायरी के आखिरी पन्ने पर लिखा एक नोट देखकर आरव का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा:
“चोर आज भी हवेली में है… किसी के बाहर निकलने का रास्ता नहीं है।”
आरव के हाथ कांप गए। क्या आज भी कोई इस हवेली में छिपा है?
बंद दरवाज़ा और फंसा चुका आरव
वह बाहर निकलने के लिए वापस गया, लेकिन जिस रास्ते से आया था, वह दीवार फिर बंद हो चुकी थी।
अब उसके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था।
उसी समय कमरे के बाहर किसी के रुकने की आवाज़ आई।
कोई बड़ा-सा साया दीवार पर दिखाई दिया।
आरव डर गया और टेबल के पीछे छिप गया।
साया धीरे-धीरे कमरे के पास आया और फिर अचानक गायब हो गया। आरव ने राहत की साँस ली, लेकिन वह जानता था कि उसे यहाँ से निकलने का रास्ता जल्द से जल्द ढेना होगा।
गुप्त नक्शा
आरव ने कमरे को ध्यान से देखा। टेबल के नीचे एक छोiटा-सा दराज था।
दरवाजा खटखटाने ही उसे एक पुराना नक्शा मिला।
यह हवेली के अंदर बने गुप्त जुड़ने का नक्शा था।
नक्शा लेकर आरव आकृतियों से बाहर निकला।
मकान में जगह-जगह सजावटी फर्नीचर, जाले और अजीब-सी गंध थी।
लेकिन वह बिना रुके दौड़ता रहा।
एक जगह उसे लगा जैसे कोई उसके पीछे चल रहा है।
पर पीछे मुड़ा तो कोई नहीं था।
शायद डर उसे बार-बार भ्रम दिखा रहा था।
आखिरकार वह उस पुराने हॉल में पहुँचा, जहाँ से सुरंग का रास्ता शुरू होना था।
लेकिन वहाँ एक लंबा, भूरे रंग की कोट पहने एक रहस्यमयी आदमी खड़ा था।
रहस्यमयी आदमी की सच्चाई
आदमी ने धीमी आवाज़ में कहा,
“तुम यहाँ क्यों आए हो?”
आरव ने धुँधला-डरते जवाब दिया,
“मैं सिर्फ़ बाहर निकलना चाहता हूँ।”
आदमी ने कहा,
“मैं भी बाहर नहीं जा पाया… मैं वही चोर नहीं हूँ जो महेन्द्र प्रताप की नीली मणि लेकर भागा था! लोग समझते रहे कि मैं गायब हो गया, लेकिन मैं हवेली में फँस गया था।”
आरव ने देखा कि उस आदमी के हाथ में वही नीली मणि थी जिसकी बात डायरी में लिखी थी।
आदमी ने कहा,
“मैंने गलती की थी… पर अब मैं तुम्हें रास्ता दिखाना चाहता हूँ। मुझे भी आज़ादी चाहिए।”
आरव को लगा आदमी सच बोल रहा है।
उसने हिम्मत करके पूछा,
“सुरंग कहाँ है?”
आदमी ने दीवार की ओर इशारा किया।
वहाँ एक चौड़ी खंभे के पीछे एक पतली-सी जगह थी, जिसे देखकर पता चलता था कि उसके पीछे कोई रास्ता छिपा है।
आखिरी दौड़ और आज़ादी
जैसे ही आरव खंभे के पास पहुंचा, हवेली में तेज हवा चलने लगी और अंधेरा और घना हो गया।
सुरंग बहुत संकरी थी, लेकिन आरव घुस गया और रेंगते-रेंगेते आगे बढ़ता गया।
कुछ देर बाद उसे सामने रोशनी दिखाई दी।
वह पूरी ताकत से बाहर निकला और उसने खुद को हवेली के ठिकानों में पाया।
ताज़ी हवा ने उसे राहत दी।
आरव ने पीछे मुड़कर देखा—रहस्यमयी आदमी सुरंग के अंदर ही रह गया था।
शायद वह अब भी अपनी गलती की सज़ा उगल रहा था।
कहानी के पात्रों की टेबल
| किरदार का नाम | भूमिका | कहानी में काम/उद्देश्य |
|---|---|---|
| आरव | मुख्य पात्र | रहस्यमयी हवेली में फँस जाता है और वहाँ से बाहर निकलने की कोशिश करता है। |
| महेन्द्र प्रताप (डायरी में) | हवेली के पुराने मालिक | उनकी डायरी से हवेली का रहस्य और चोरी की घटना पता चलती है। |
| रहस्यमयी आदमी | पहले का चोर | गलती से हवेली में फँस गया था; आरव को सुरंग का रास्ता दिखाता है। |
| आरव के दोस्त | सहायक पात्र | चुनौती देकर आरव को हवेली में जाने के लिए प्रेरित करते हैं। |