सातवाँ कमरा – एक थ्रिलर कहानी

पुराना पहाड़ी कस्बा धरनागढ़ अपनी खाली झाड़ियों और शांत गलियों के लिए मशहूर था, लेकिन उसी झाड़ियों के बीच एक ऐसी कोठी थी, जिसके बारे में लोग फुसफुसाहट में बात करते थे—वर्मा हवेली। कहते थे कि हवेली में बने सात कमरों में से छह तो सामान्य हैं, पर सातवाँ कमरा कभी किसी ने खोला ही नहीं।
लोगों का आना-जाना था कि जो भी शामिल गया, वापस नहीं लौटा। पर ज़्यादातर लोग इसे सिर्फ़ अफ़वाह समझते थे।
लेकिन कहानी तब शुरू हुई, जब अनिरुद्ध, जो एक युवा पत्रकार था, हवेली और उसके रहस्य पर एक लेख लिखकर वहाँ पहुँचा।
रहस्य की पहली झलक
अनिरुद्ध हमेशा सच्चाई के पीछे दौड़ने वाला इंसान था। उसने भी हवेली के डरावने किन लोगों को बचपन से सुना था, लेकिन मन में उसे यकीन नहीं था कि कोई कमरा किसी को गायब कर सकता है।
वह हवेली के बाहर पहुँचा तो उसके सामने धूल से भरी बड़ी लकड़ी की दरवाज़ा था, जिस पर समय की मार साफ़ दिखती थी। दरवाज़ा धीमी हवा में चरमराता था मनो खुद कह रहा हो– “मत आओ…”
हवेली की देखभाल करने वाला बूढ़ा चौकीदार रामू काका उसे दरवाज़े पर ही मिल गया।
“बाबूजी, अंदर मत जाइए… यह जगह ठीक नहीं,” काका ने कांपती आवाज़ में कहा।
अनिरुद्ध मुस्कुराया, “काका, मैं सिर्फ देखने आया हूँ। कोई कमरा किसी को कैसे खा सकता है?”
काका ने बस एक गहरी साँस ली और धीरे से बोला, “आप जैसी समझ हो… पर सावधान रहना।”
मकान की खामोशी
हवेली में कदम रखते ही अनिरुद्ध को एक अजीब-सी ठंड ने घेर लिया। कमरे की दीवारों पर पुराने चित्र टंगे थे, जिनमें हवेली के मालिक रघुनंदन वर्मा के परिवार के लोग थे। पर हर चेहरे में एक अजीब बेचैनी झलक रही थी।
हॉल के बीच में एक लंबी सीढ़ी ऊपर की मंज़िल की ओर जाती थी। पदाधिकारियों के जानकार पर छह दरवाज़े थे और आखिरी में एक कमरे का दरवाज़ा अलग तरह का, काला और भारी—सातवाँ कमरा।
अनिरुद्ध की नज़रें उसी पर जाकर अटक गईं।
रामू काका की कहानी
अनिरुद्ध ने नोटबुक निकाली और काका से सवाल पूछा शुरू किया।
“काका, लोग सातवें कमरे से इतने क्यों असिस्टेंट हैं?”
काका की आवाज़ भारी हो गई।
“साहब… ये हवेली कभी खुशी से भरी थी। वर्मा साहब, उनकी पत्नी और दो बच्चे। लेकिन एक रात अचानक सब बदल गया। बिजली कड़की, बादल गरजे, और हवेली के सातवें कमरे से चीखें आईं। अगले दिन पूरा परिवार गायब… बस गायब!”
“और पुलिस?” अनिरुद्ध ने पूछा।
“जाँच हुई, पर कुछ नहीं मिला। दरवाज़ा ताला बंद ही मिला, पर अंदर… कोई नहीं। तब से ये कमरा शापित माना जाता है।”
सातवें कमरे का बुलावा
अनिरुद्ध अपने मन में आधा डर और आधी जिज्ञासा के लिए उस कमरे की ओर बढ़ा।
जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था, हवा और खाली होती जा रही थी।
उसने जैसे ही दरवाज़े को हाथ लगाया, उसे ऐसा लगा मनो दरवाज़ा हल्का-सा कांपा हो।
अनिरुद्ध चौंक गया।
“शायद भ्रम होगा,” उसने खुद को समझाया।
लेकिन अगली ही पल दरवाज़ा खुद-ब-खुद धीरे-धीरे चरमराता हुआ खुल गया।
अंदर अँधेरा था, पर किसी अनदेखी शक्ति ने मनो उसे भीतर खींच लिया।
अनिरुद्ध ने हिम्मत करके कदम रखा। कमरे के बीचोंबीच एक पुरानी लकड़ी की मेज थी, जिस पर धूल की मोटी परत जमी थी—सिवाय एक जगह के, जहाँ किसी ने हाल ही में उंगली से कुछ लिखा था:
“मदद करो…”
यह देखकर अनिरुद्ध का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
अजीब आवाज़ें और परछाइयाँ
जैसे ही वह कमरे में आगे बढ़ा, उसे पीछे से किसी के चलने की आवाज़ आई।
वह तेज़ी से मुड़ा—कोई नहीं।
फिर एक देर सी फुसफुसाहट सुनाई दी, जैसे कोई उसके कान में कह रहा हो,
“वापस जाओ…”
अनिरुद्ध का गला सूख गया, पर वह डर से पीछे नहीं हट।
पत्रकार की जिज्ञासा अक्सर साहस से बड़ी होती है।
उसने मोबाइल की टॉर्च ऑन की और कमरे के कोने देखने लगा।
तब, दीवार पर टंगी एक पुरानी फोटो उसकी नज़र में आई।
फोटो में वही परिवार था—रघुनंदन वर्मा, उनकी पत्नी और दो बच्चे।
लेकिन अजीब बात यह थी कि सभी के चेहरे पर उँगलियों से बने शोधकर्ता दिखाई देते थे।
छुपा हुआ दरवाज़ा
कमरे की दीवार पर हाथ फिराते हुए उसे कुछ ढीला-सा महसूस हुआ।
उसने ज़ोर लगाया, और दीवार का एक हिस्सा अंदर की ओर धंस गया।
एक छोटा-सा गुप्त दरवाज़ा सामने आ गया।
अंदर से ठंडी हवा का तेज़ झोंका निकला।
अनिरुद्ध ने अंदर झाँका—अँधेरा।
पर उसे एक आवाज़ साफ़ सुनाई दी—बच्चों के रोने की आवाज़।
अब डर हावी हो चुका था, पर वह वापस नहीं जा सकता था।
सत्य उसके सामने था, बहुत करीब…
हकीकत का सामना
जैसे ही उसने गुप्त कमरे में कदम रखा, उसका मोबाइल बंद हो गया।
पूरा कमरा अँधेरे में डूब गया।
अचानक उसके सामने दो छोटी-सी रोशनी जैसे जगमगाईं—दो जाली।
फिर एक महिला की कराहीती आवाज़ आई,
“हमें बाहर निकालो…”
अनिरुद्ध पीछे हटना चाहता था, पर उसके पैर जैसे ज़मीन में जड़ हो गए।
अगली ही पल, उसे एक झटका लगा और जैसे पूरी दुनिया घूमने लगी।
वह बेहोश हो गया।
सच्चाई
जब वह जागा, वह हवेली के बाहर ज़मीन पर पड़ा था।
सुबह हो चुकी थी।
रामू काका उसके पास खड़े थे।
“बाबूजी! आप अंदर कैसे गिर गए? मैंने तो देखा कि आप लोकेशन से नीचे फिसल आए,” काका ने कहा।
“लेकिन मैं कमरे में था… गुप्त कमरे में… वहाँ कोई था!”
अनिरुद्ध ने हाँफते हुए कहा।
काका ने गहरी साँस ली।
“साहब, सातवाँ कमरा अब बंद है। उसमें कोई नहीं जाता। शायद आपने सपना देखा होगा…”
कहानी के पात्रों की तालिका
| किरदार | भूमिका / | कहानी में काम |
|---|---|---|
| अनिरुद्ध | मुख्य पात्र, पत्रकार; | हवेली के रहस्य की सच्चाई खोजता आता है। |
| रामू | काका हवेली का चौकीदार; | सातवें कमरे के श्राप के बारे में चेतावनी देता है। |
| रघुनंदन वर्मा | हवेली का पुराना मालिक; | उसके परिवार रहस्यमय तरीके से गायब हो जाता है। |
| वर्मा की पत्नी | कमरे की आत्मा का हिस्सा; | अनिरुद्ध को “मदद करो” का संकेत देती है। |
| वर्मा के बच्चे | हवेली के गुप्त कमरे से रोने की आवाज़ें सुनाती हैं; | गायब होने के रहस्य का अहम हिस्सा। |