कहानी: नीली रोशनी वाला कमरा

शहर के पुराने हिस्से में एक बेकार मकान खड़ा था—“हवेली नंबर 17”। लोग कहते थे कि उस हवेली के अंदर एक कमरा है, जहाँ से रात होने पर नीली रोशनी निकलती है। कोई नहीं जानता था कि वह रोशनी क्यों जलती है, कौन उसे जलाता है, या फिर उस कमरे में कौन रहता है। बस इतना जाना था कि जो भी वहाँ जाने की कोशिश करता है, वह कुछ समय तक अजीब तरह से चुप और सहमा हुआ रहता है।
कहानी की शुरुआत होती है आरव से, जो एक युवा पत्रकार था। उसका काम था अनसुनी और अनकही कहानियों को उजागर करना। जब उसे “नीली रोशनी वाले कमरे” का ज़िक्र पहली बार सुनने को मिला, तो उसकी जिज्ञासा बढ़ गई। उसने तय किया कि चाहे कुछ भी हो, वह इस रहस्य को सुलझाकर रहेगा।
पहला पड़ाव: पुरानी हवेली
शाम के करीब 7 बजे आरव वहाँ पहुँचा। आसमान में अँधेरा धीरे-धीरे घिर रहा था। हवेली की मिल पपड़ीदार थीं, दरवाज़ों पर जंग लगे किवाड़ थे, और उसके सामने एक पुराना बरगद का पेड़ खड़ा था, जिसकी परछाईं अंधेरे में और डरावनी लग रही थी।
आरव ने टॉर्च चालू की और दरवाज़े को हल्का-सा धक्का दिया। दरवाज़ा धीमी-सी कराह के साथ खुल गया।
अंदर ठंडक थी—अजीब सी, जैसे हवा कहीं से फूँककर आ रही हो। लकड़ी का फफूंद टूट-फूट चुका था, और कोने में मक्खियों के जाले थे। सारी पुराने समय की एक भूली हुई स्मृति जैसी थी।
लेकिन…
सीढ़ियों के ऊपर एक रोशनी-सी नीली चमक दिखाई दे रही थी।
आरव का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। वही था—नीली रोशनी वाला कमरा।
दूसरा पड़ाव: रहस्यमय आवाज़ें
आरव ने एक-एक कदम सावधानी से रखा और गतिशील पर पहुँचने लगा। जैसे-जैसे वह रोशनी के पास पहुँच रहा था, हवा और ठंडी होती जा रही थी।
तभी उसे पीछे से किसी के चलने की खड़-खड़ आवाज़ आई।
“कौन है?”—आरव ने मुड़कर पूछा।
कोई जवाब नहीं।
टॉर्च की रोशनी में सिर्फ खाली मिल थीं।
लेकिन उसने साफ सुना था—कोई था वहाँ।
वह फिर आगे बढ़ा। इस बार आवाज़ थोड़ी और पास से आई।
पर आरव पीछे नहीं हट। उसकी जिज्ञासा उसके डर से कहीं ज़्यादा थी।
तीसरा पड़ाव: नीली रोशनी वाला कमरा
कमरे का दरवाज़ा आधा खुला था और अंदर से नीली रोशनी पूरी तरह फैल रही थी।
आरव ने धीरे-धीरे दरवाज़ा खोला।
अंदर एक गोल मेज़ थी, जिस पर एक पुराना लालटेन रखा था। वही लालटेन नीली रोशनी फैला रहा था—लेकिन उसमें कोई बत्ती नहीं थी। रोशनी खुद-ब-खुद निकल रही थी।
कमरे में धूल, पुरानी लकड़ी के वज़न, और दीवारों पर कुछ पुराने चित्र टंगे हुए थे। लेकिन सबसे अजीब था—एक ही तस्वीर में किसी की चौड़ाई नीली रोशनी में चमकती हुई दिख रही थीं।
तब कमरे में एक धीमी-सी सरसराहट हुई।
कोई था वहाँ।
“तुम यहाँ क्यों आए हो?”—एक धीमी, टूटी-सी आवाज़ गूँजी।
आरव ने टॉर्च घुमाई।
कोने में एक बूढ़ी औरत खड़ी थी—सफेद बाल, तेज़ चेहरा, और हाथ में एक पुरानी चाबी।
वह थी—शांति देवी। हवेली की आखिरी देखभाल करने वाली।
आरव डर तो गया, मगर उसने हिम्मत बढ़ाकर पूछा—
“ये नीली रोशनी क्यों जलती है? इसमें ऐसा क्या रहस्य है?”
चौथा पड़ाव: कमरे का सच
शांति देवी ने गहरी साँस ली और बोली—
“यह कमरा मेरे बेटे विक्रम का है। वह वैज्ञानिक था… असाधारण दिमाग वाला। उसने एक अनोखा प्रयोग किया था—‘आत्मा ऊर्जा’ पर। उसने कहा था कि हर इंसान मरने के बाद अपने आस-पास एक अदृश्य ऊर्जा छोड़ जाता है। उसने उस ऊर्जा को ‘देखने’ और ‘कैद’ करने का तरीका खोज लिया था।”
वह मेज़ की तरफ़ बढ़िया और नीली रोशनी फैलाने वाले लालटेन की ओर इशारा किया।
“यह उसकी बनाई मशीन है। उसी के कारण यह नीली रोशनी निकलती है। विक्रम कहता था कि किसी की अधूरी आत्मा इस रोशनी को सक्रिय कर देती है… और तब तक यह रोशनी जलती रहती है जब तक उसका काम पूरा न हो जाए।”
आरव की उल्टी फैल गई।
“तो यहाँ किसकी आत्मा है? और उसका काम क्या है?”
शांति देवी ने धीमी आवाज़ में कहा—
“मेरे बेटे की… जो एक हादसे में इस कमरे में ही मेरा था। उसका प्रयोग अधूरा रह गया था। उसकी आत्मा अब भी इस कमरे में मंदराती है। वह किसी ऐसे इंसान का इंतज़ार कर रहा है जो उसका काम पूरा कर सके।”
आरव के शरीर में सिहरन दौड़ गई।
उसे कुछ महसूस हुआ… जैसे कोई अदृश्य चीज़ उसके पास खड़ी हो।
नीली रोशनी अचानक तेज़ होने लगी, लालटेन की लौ जैसे भड़क ज्य।
पाँचवाँ पड़ाव: आत्मा का संदेश
आरव ने देखा कि एक कागज़ हवा में खुद-ब-खुद उड़कर मेज़ पर आ गिरा।
उस पर लिखा था—
“यदि यह रोशनी बुझ गई, तो मेरी आत्मा मुक्त हो जाएगी।”
नीली रोशनी धीरे-धीरे काँपने लगी थी—जैसे कोई चाहता हो कि वह बुझ जाए।
आरव ने पूछा—“ये रोशनी खुद ही बंद क्यों नहीं होती?”
शांति देवी बोली—“क्योंकि उसे किसी जीवित इंसान की इच्छा की आवश्यकता है। जो उसका काम पूरा मान ले… उसे आज़ाद कर दे।”
आरव ने नीली रोशनी की तरफ देखा।
उसे लगा जैसे कोई धीमी साँस ले रहा हो, जैसे कोई मुक्ति चाहता हो।
उसने साहस जुटाकर कहा—
“विक्रम, तुम्हारा काम पूरा हुआ। तुम मुक्त हो।”
बस इतना कहता ही…
कमरा बिल्कुल शांत हो गया।
नीली रोशनी धीरे-धीरे कम होते हुए पूरी तरह बुझ गई।
शांति देवी की आँखों से आँसू बहने लगे।
“सालों बाद मेरी हवेली फिर शांत हुई है,” उन्होंने कहा।
अंत: हवेली की नई शुरुआत
कहानी में उपयोग हुए पात्र – तालिका
| पात्र का नाम | भूमिका | कहानी में योगदान |
|---|---|---|
| आरव | मुख्य पात्र / युवा पत्रकार | नीली रोशनी वाले कमरे के रहस्य को खोजता है और अंत में आत्मा को मुक्त करता है। |
| शांति देवी | हवेली की देखभाल करने वाली | विक्रम के प्रयोग और नीली रोशनी का रहस्य बताते हैं। |
| विक्रम | वैज्ञानिक (आत्मा रूप में) | नीली रोशनी वाली तकनीक का आविष्कार करता है; उसकी आत्मा कमरे में बंधी रहती है और अंत में मुक्त होती है। |
| हवेली नंबर 17 | स्थान / पृष्ठभूमि पात्र जैसा | कहानी का मुख्य वातावरण; रहस्य, सन्नाटा और डर का उपनगर है। |