घड़ी में छिपी मौत — एक रहस्य कहानी

बरसों पुरानी हवेली के टूटे हुए दरवाज़े पर जब शहर का नामी पत्रकार आदित्य खन्ना आया, तो हवा में एक अजीब-सी सनसनाहट थी। दो दिन पहले उसने एक खबर सुनी थी—पुरानी मेहरा हवेली की दीवारों में गूंजती है एक घड़ी, जिसकी टिक-टिक मौत की आहट मानी जाती है।
कहा जाता था कि उस हवेली में जो भी घड़ी को छूता है, वह कुछ ही दिनों में मर जाता है।
आदित्य को यह सब अंधविश्वास लगता था, लेकिन उसके भीतर की पत्रकारिता ने उसे यहाँ तक खींच लाया था।
हवेली के बड़े दरवाज़े से भीतर कदम रखता ही धूल का धुआँ उसके चेहरे से टकराया। चारों तरफ़ फूटे फ़र्नीचर, काले पड़े चित्र और जाले ही जाले।
लेकिन हवेली के बीचों-बीच रखी पुरानी दादी-नानी वाली गोल लकड़ी की घड़ी पूरी हवेली से बिल्कुल अलग लग रही थी—जैसे किसी ने अभी-अभी साफ़ की हो।
उसका पेंडुलम बहुत ही धीमी चाल से चल रहा था।
टिक… टिक… टिक…
धुन में ऐसा कुछ था जो सामान्य नहीं था—मानो हर टिक के साथ कोई दर्द भरी सांस निकल रही हो।
आदित्य ने जैसे ही घड़ी को दिला के लिए हाथ बढ़ाया, हवेली का दरवाज़ा जोर से बंद हो गया।
वह चौंक गया, लेकिन खुद को संभालकर उसने घड़ी की जांच शुरू की।
रहस्यमयी डायरी
घड़ी के पीछे उसे एक पुरानी चमड़े की डायरी मिली।
उसने पन्ने पलटे—हर पन्ने पर एक ही नाम लिखा था—“राजन मेहरा”, हवेली के आखिरी मालिक।
डायरी में अजीब-अजीब बातें थीं—
- “मेरी बनाई घड़ी इंसान की सच्चाई बताती है।”
- “झूठ बोलने वाले इसकी टिक-टिक सुनकर पागल हो जाते हैं।”
- “घड़ी किसी को मारती नहीं, बस उसके भीतर छिपे सच को बाहर निकालती है।”
आदित्य के मन में कई सवाल उठते, तब अचानक एक तेज आवाज सुनी। कोई हवेली में और भी था।
अनजाना आदमी
अंधेरे जंगलों से एक दुबला-पतला आदमी निकलकर आया।
उसकी आकृति धँसी हुई थीं और वह घबराया हुआ लग रहा था। उसका नाम था शेखर, जो पहले हवेली का चौकीदार रह चुका था।
उसने कांपती आवाज़ में कहा,
“आपको यहाँ नहीं आना चाहिए था साहब… यह घड़ी शापित है। जिसने भी इसे दबाया, वह बचा नहीं!”
आदित्य ने शांत स्वर में कहा,
“भूत-प्रेत में विश्वास नहीं करता, लेकिन यह घड़ी ज़रूर कुछ छिपी रही है। तुमने यह सब कैसे जाना?”
शेखर ने बताया कि 15 साल पहले राजन मेहरा अचानक गायब हो गए थे। उसी रात हवेली में चीखें गूंजी थीं और घड़ी का पेंडुलम खून से लाल हो गया था।
घड़ी की सच्चाई
आदित्य ने घड़ी खोलने की कोशिश की। तभी उसे एक छोटा-सा कूपन जैसा बंद हिस्सा दिखा।
उसने शेखर से पूछा,
“क्या यह कूपन की चाबी आपके पास है?”
शेखर ने सिर घुमाया, “नहीं साहब… लेकिन कहते हैं कि राजन साहब ने चाबी अपने किसी भरोसेमंद आदमी को दी थी।”
अचानक हवेली की आवाजाही पर किसी के पैदल चलने की आवाज़ आई।
दोनों ऊपर की ओर भागे।
ऊपर का कमरा पूरी तरह धूल से ढका था, लेकिन एक चीज़ साफ थी—एक बड़ा काँच का बॉक्स, जिसमें एक काली डायरी और एक पुरानी चाबी रखी थी।
जैसे ही आदित्य ने चाबी उठाई, पीछे से किसी ने भारी पैदल चलने से दरवाज़ा धड़ाम से बंद कर दिया।
धीरे-धीरे अंधेरे में एक परछाई उभरकर सामने आई—एक बूढ़ा, लेकिन मजबूत कद का आदमी—विजय मेहरा, राजन मेहरा का छोटा भाई।
सच्चाई का खुलासा
विजय ने हँसते हुए कहा,
“तुम लोग घड़ी की कहानी सुन यहाँ आए हो, लेकिन असली मौत तो मेरे हाथ हुई थी!”
वह आगे बोला,
“मेरे भाई को एक ऐसी घड़ी बनाई थी, जो झूठ पकड़ सके। मैंने उसे रोका, लेकिन वह नहीं माना।
उस रात मैंने ही उसे खत्म किया और उसकी लाश घड़ी के भीतर छिपा दी।”
शेखर चीखा—“तो यह घड़ी भूतिया नहीं, बल्कि…”विजय ने बीच में ही कहा, “…मेरे जुर्म की गवाह है।”
उसी समय, आदित्य ने चाबी घड़ी के टुकड़ों में लगा दी।
घड़ी खुलते ही उसके भीतर एक पुराना कंकाल गिर पड़ा—राजन मेहरा का।
विजय का चेहरा पीला पड़ गया।
घड़ी का पेंडुलम तेजी से चलने लगा—
टिक-टिक… टिक-टिक… टिक-टिक…
मानो घड़ी खुद सच्चाई को बाहर निकाल रही हो।
अंतिम मोड़
आदित्य ने तुरंत पुलिस को फोन किया।
लेकिन जैसे ही विजय लगी, घड़ी के गिरते हिस्से का एक भारी टुकड़ा उसके सिर पर गिरा और वह वहीं मर गया।
शेखर घबरा गया, लेकिन आदित्य ने शांत रहते हुए कहा,
“यह घड़ी मौत नहीं देती, बल्कि सच्चाई छिपने नहीं देती।”
घड़ी की टिक-टिक धीरे-धीरे रुक गई—जैसे उसने अपना मकसद पूरा कर लिया हो।
आदित्य ने हवेली से बाहर निकलते हुए घड़ी की ओर देखा।
आज हवेली शांत थी।
बहुत पुरानी एक हत्या का रहस्य खुल चुका था।
घड़ी अब केवल एक पुरानी चीज थी—मौत की नहीं, बल्कि सच की गवाही।
पात्र की तालिका
| पात्र का नाम | कहानी में भूमिका | मुख्य विशेषताएंएँ |
|---|---|---|
| आदित्य खन्ना | पत्रकार और कहानी का मुख्य | नायक साहसी, जिज्ञासु, उबलते, सच की तलाश में |
| शेखर | पुराना चौकीदार | डरपोक लेकिन सच्चाई जानता है; आदित्य की मदद करता है |
| राजन मेहरा | हवेली का असली मालिक (मृत) | सच उजागर करने वाली घड़ी का निर्माता; हत्या का शिकार |
| विजय मेहरा | कहानी का असली खलनायक | अपने भाई की हत्या करता है; लालची और चालाक |
| मेहरा | हवेली कहानी का मुख्य स्थान | रहस्यमयी, पुराना, सच्चाई छिपाए हुए |