दुख खामोशियाँ

शहर के पुराने हिस्से में बने एक शांत, संकेरे सामानों में एक छोटा-सा कमरा था। उसी कमरे में अदिति अपनी माँ के साथ रहती थी। कमरा तो छोटा था, पर उसमें भरी खामोशी इतनी बड़ी थी कि बाहर के शोर भी उसके आगे खो जाते थे।
अदिति शुरू से ही चुप रहने वाली लड़की थी, लेकिन ये चुप्पी सिर्फ स्वभाव नहीं थी—ये दर्द का बोझ था, जिसे वह किसी से कह नहीं पाती थी। उसकी माँ, मीरा, सिलाई का काम करती थी। दिन-भर चलने वाली मशीन की ‘टर्र-टर्र’ आवाज़ ही घर की कमाई थी। मीरा की आँखों में हमेशा थकान रहती थी, लेकिन वह अपनी बेटी को देखकर मुस्कुराती थी, मानो दुनिया की सारी मुश्किलें उसी मुस्कान में बंधी हों।
अदिति अक्सर शाम को छत पर जाकर बैठ जाती थी। वहाँ से आसमान खुला दिखता था—वह आसमान जो उसे आज़ादी की याद ताज़ा करता था, जिसे वह पाना चाहती थी। कॉलेज की पढ़ाई के साथ वह कविताएँ भी लिखती थी। उसकी नोटबुक में एक ही शब्द बार-बार लिखा मिलता था—“खामोशी”।
एक अजनबी दोस्त
एक दिन कॉलेज से लौटते समय उसकी मुलाकात आरव से हुई। वह अदिति की क्लास का ही था, पर दोनों ने कभी ठीक से बात नहीं की थी। उस दिन बस स्टॉप पर भीड़ ज़्यादा थी। आरव ने अदिति को देखा और हल्का-सा मुस्कुराया।
“तुम रोज़ कविता की नोटबुक साथ रहो, कुछ लिखती भी हो या बस चलाने के लिए?” उसने मज़ाक में कहा।
अदिति चौंकी, पर मुस्कुराई नहीं। “लिखती हूँ… अपनी ख़ामोशियों के बारे में,” उसने धीरे-धीरे से कहा।
आरव को उसके जवाब में कुछ अलग-सी गहराई महसूस हुई। फिर उनसे बात का दायरा शुरू हुआ। धीरे-धीरे आरव अदिति की दुनिया का वह हिस्सा बनने लगा, जहाँ वह अपनी चुप्पियाँ खोल सके।
अदिति का छिपा दर्द
हालाँकि अदिति मुस्कुराने लगी थी, पर उसके मन में एक गहरा ज़ख्म था—उसके पिता का अस्तित्व।
अदिति छोटी थी, तब उसके पिता घर छोड़कर चले गए थे। घर में रोज़ शराब, शीशे और बर्तनों की आवाज़ गूंजती थी। अदिति कई रातें माँ से लिपटकर रोते-रोते गुज़रती थी। एक दिन पिता ने माँ को बहुत बुरी तरह चोट पहुँचाई और तभी मीरा ने दरवाज़ा बंद कर उन्हें हमेशा के लिए बाहर कर दिया।
उसके बाद घर में बस खामोशी रह गई—और वही अदिति की कहानी बन गई।
आरव का असर
आरव को यह सच्चाई थोड़ा-थोड़ा समय के साथ पता चली। उसने कभी भी अदिति को उसके दर्द के लिए जज नहीं किया। बल्कि उसे समझने की कोशिश की।
एक दिन आरव ने कहा,
“अदिति, दुख बोलते नहीं… पर जब तुम लिखती हो, तो लगता है तुम्हारी खामोशियाँ भी आवाज़ बन जाती हैं।”
अदिति पहली बार किसी के सामने रो पड़ी। उसे ऐसा लगा कि बरसों से जमी बर्फ पिघल रही हो।
माँ का संघर्ष
उड़ मीरा के लिए दिन-रात एक समान थे—सिलाई मशीन, घर का काम और अपनी बच्ची की चिंता। वह चाहती थी कि अदिति खूब आगे बढ़े, खुश रहे, लेकिन उसे यह भी डर था कि कहीं दुनिया उसकी बच्ची की नाज़ुक भावनाओं को कुचल न दे।
कभी-कभी मीरा देर रात अदिति को लिखती देखती और सोचती—
“काश मैं भी इसके दर्द का कुछ हिस्सा बढ़कर हल्का कर पाता।”
घटना जिसने सब बदल दिया
एक दिन कॉलेज से लौटते समय अदिति और आरव सड़क पार कर रहे थे। अचानक एक कार बहुत तेज़ी से आई। आरव ने अदिति को खींचकर बचा तो लिया, लेकिन खुद गिर पड़ा और उसके पैर में गंभीर चोट आ गई।
अदिति घबरा गई। वह अस्पताल के बाहर मुस्कुराते रोती रही।
वह रही नहीं—सिर्फ़ वही चुप्पी, वही टूटी साँसें… उसे लग रहा था कि उसकी दुनिया फिर से किसी अंधेरे में चली गई है।
आरव की हालत खतरे से बाहर थी, पर उसे कई हफ्तों तक बिस्तर पर रहना था। अदिति रोज़ उसके पास बैठती, उसे किताबें भागीदारों सुनाती—और शायद अपनी मन की बातें भी उन पन्नों में छिपा देती।
अदिति की कविता – टूटी खामोशियाँ
उस दौरान अदिति ने एक लंबी कविता लिखी—
“टूटी खामोशियाँ”
जिसने अपने दर्द, अपनी माँ की उन्नति, अपने डर और अपनी उभरती उम्मीदों को शब्द दिए।
आरव ने जब वह कविता सुनी, उसके आकार भर आये।
“अदिति… यह सिर्फ कहानी नहीं, यह तुम हो। और तुम जितनी सोचती हो उससे कहीं ज्यादा मजबूत हो।”
पहली बार अदिति ने किसी की आँखों में अपने लिए सम्मान और अपनापन साथ-साथ देखा।
अंत—खामोशियों का टूटना
धीरे-धीरे आरव ठीक हो गया। अदिति की कविता कॉलेज संस्थाओं में छपी और काफी लोगों ने उसकी तारीफ़ की।
मीरा ने वह कविता पढ़ी और रो पड़ी—पर उस दिन उसके आँखों में गर्व के आँसू थे।
अदिति अब वह लड़की नहीं रही, जो अपने दर्द को सिर्फ सहती थी। उसने सीखा था कि खामोश रहना कमजोरी नहीं, लेकिन उन्हें तोड़कर बोल पाना साहस है।
उसने माँ का हाथ पकड़ा और कहा—
“माँ, अब हम डरकर नहीं जिएंगे। हमारे पास दर्द है… पर उससे बड़ी हमारी हिम्मत है।”
देनदारी की वह खामोश गली अब थोड़ी रोशन लगने लगी थी।
और अदिति की असफलता खामोशियाँ अब आवाज़ बन चुकी थीं—एक नई शुरुआत की आवाज़।
कहानी के पात्रों की तालिका
| पात्र का नाम | भूमिका / कार्य | विवरण |
|---|---|---|
| अदिति | मुख्य पात्र अंदर से असफलता, | शांत स्वभाव की लड़की जो अपने बचपन के दर्द और निराशा को रचनाओं में उकेरती है। कहानी उसके भावनात्मक संघर्ष और आत्मविश्वास की यात्रा को अभिवादन है। |
| मीरा | अदिति की माँ संघर्षशील, मेहनती और | संवेदनशील महिला। अकेले ही अदिति की परवरिश करती है और उसे हिम्मत देती है। |
| आरव | अदिति का दोस्त | अदिति की असफलता को समझने वाला, स्नेही और सहायक युवक। उसकी वजह से अदिति अपनी भावनाएँ खुलकर कह पाती है। |
| अदिति का पिता | नकारात्मक पृष्ठभूमि | पात्र शराबी, हिंसक और परिवार को छोड़ने वाला व्यक्ति। उसकी वजह से अदिति और मीरा का जीवन दर्द और डर से भरा रहा। |
| देनदार के लोग | सहायक वातावरण | कहानी में पर्यावरणीय और सामाजिक पृष्ठभूमि बनाने का काम करते हैं। |