दो दिलों की अधूरी दास्तान

दो दिलों की अधूरी दास्तान

दो दिलों

कभी-कभी ज़िंदगी में ऐसी मोहब्बत मिलती है, जो पूरी न होकर भी दिल के सबसे बेकार रहती है। ठीक वैसी ही कहानी है आरव और प्रिया की—दो दिल, दो रास्ते, एक अधूरी दास्तान।

दिल्ली के पुराने चांदनी चौक में रहने वाला आरव, एक शांत-स्वभाव, सपनों से भरा हुआ जलन था। उसे किताबें पढ़ते और सड़क पर चाय की चुस्की लेते हुए लोगों को देखना पसंद था। उसकी दुनिया छोटी थी, मगर उसमें भावनाओं की कोई कमी नहीं थी। वहीं दूसरी तरफ थी प्रिया, जोश से भरी, मुस्कान में जादू के लिए हुए, सपनों को उड़ान देने वाली लड़की। वह लखनऊ से दिल्ली आई थी अपनी डिजाइनिंग की पढ़ाई पूरी करने।

दोनों की दुनिया बिल्कुल अलग थी, लेकिन किस्मत ने उन्हें एक ही मोड़ पर ला खड़ा किया—दिल्ली यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में।

पहली मुलाकात

उस दिन लाइब्रेरी में तेज़ बारिश हो रही थी और आरव हमेशा की तरह अपनी पसंदीदा खिड़की वाली सीट पर बैठा किताब पढ़ रहा था। अचानक उसके बगल वाली कुर्सी पर हल्का सा थैला गिरा, और उसने देखा—एक लड़की घबराई हुई साँसें लेते हुए बैठी है, उसके बाल बारिश से भीगे हुए थे।

“सॉरी, बैग फिसल गया…” प्रिया ने देर रात मुस्कान के साथ कहा।

आरव ने सिर्फ इतना ही कहा, “कोई समस्या नहीं…” लेकिन उसके अंदर कुछ हलचल जरूर हुई।

उस दिन से बातचीत के छोटे-छोटे धागे बनने लगे। पहले लाइब्रेरी में, फिर कैंटीन में, और धीरे-धीरे शाम की सड़कों पर।

सड़ियाँ बढ़ती गईं

दोनों के बीच दोस्ती एक ऐसी राह ले रही थी जहाँ हर बात खास लगने लगी थी। प्रिया ने आरव को खुलकर जीना सिखाया—कभी सड़क किनारे गोलगप्पे खाते हुए, कभी हँसते-हँसते आँसू आने तक बताई बातें करते हुए।

आरव की दुनिया प्रिया से रंगीन होने लगी थी। वह उसे देखकर मुस्कुराता था, लेकिन कह नहीं पाता कि वह उसके लिए क्या महसूस करता है।

प्रिया भी आरव की परवाह करती थी। वह उसका दुख पहचान लेती थी, बिना कुछ कहे ही उसके चेहरे पर आई उदासी पढ़ लेती थी।

मगर किस्मत को शायद अधूरी कहानियाँ ज़्यादा पसंद थीं।

सपनों की जंग

एक दिन प्रिया ने बताया कि उसे पेरिस में फैशन डिजाइनिंग की बड़ी स्कॉलरशिप मिली है। यह उसका बचपन का सपना था।

आरव खुश तो हुआ, लेकिन दिल के किसी कोने में डर बैठ गया—क्या दूरी उनके रिश्तों की धड़कनें धीमी कर देगा?

उसने कुछ भी कहा की जगह सिर्फ़ इतना कहा,

“तुम्हें जाना चाहिए, प्रिया। सपनों से बड़ा कुछ नहीं होता।”

प्रिया ने उसकी आँखों में कुछ ढहा, शायद विद्यार्थियों की उम्मीद, मगर आरव चुप रहा।

वह प्यार तो करता था, लेकिन अपनी भावनाएँ बोझ बनाना नहीं चाहता था।

विदाई का दिन

हवाई अड्डे पर दोनों की आँखें नम थीं।

प्रिया ने से कहा,

“अगर तुम्हें कभी लगा कि मैं तुम्हारे लिए खास हूँ… तो मुझे रोक लेते।”

आरव ने जवाब नहीं दिया। बस मुस्कुराया—वही मजबूर मुस्कान, जो दिल टूटने वाली थी।

प्रिया चली गई… और उसके साथ चली गई आरव की कई अनकही बातें।

अधूरी मोहब्बत की शुरुआत

पेरिस में प्रिया नए सपनों में खो गई, लेकिन आरव की यादें बहुत गहरी थीं।

आरव अपनी नौकरी और जिम्मेदारियों में लगे रहे, लेकिन जब भी दिल्ली की बारिश होती, उसे प्रिया की पहली मुलाकात याद आ जाती।

दोनों के बीच कभी-कभार ऑनलाइन बातें होती थीं—औपचारिक, सतही, बस हाल-चाल अवधारणाओं भर की।

जो रिश्ता कभी दिलों की धड़कनों पर चलता था, अब सिर्फ शब्दों में सिमट गया था।

वापसी और सच का सामना

तीन साल बाद प्रिया दिल्ली लौटी।

उसने आरव को मैसेज किया—“कॉफी?”

आरव मिला। दोनों के बीच एक अजीब खामोशी थी।

बीच-बीच में मुस्कुराहटें थीं, पुरानी यादें थीं, पर वह पुरानी गर्मजोशी जैसे कहीं खो गई थी।

प्रिया ने हल्के-से कहा,

“यदि तुमने उस दिन मुझे रोक लिया होता… शायद कहानी कुछ और होती।”

आरव ने पहली बार सच कहा,

“ मैंने तुम्हें जाने दिया क्योंकि तुम्हारी उड़ान सपनों के लिए जरूरी थी। मैं तुम्हारी वजह से नहीं बनना चाहता था।”

प्रिया की आकृति भर आईं।

“और तुम्हें? तुम्हें क्या चाहिए था, आरव?”

आरव ने धीरे से कहा,

“तुम… लेकिन कुछ धोना चाहकर भी मिलती नहीं हैं।”

कुछ पल दोनों चुप रहे। न कोई शिकायत, न कोई गिला।

सिर्फ एक एहसास—प्यार का, जो पूरा नहीं हुआ… लेकिन खत्म भी नहीं हुआ।

कहानी का अंत… या शायद शुरुआत?

दोनों अपनी-अपनी दुनिया में वापस चले गए।

अब वे दोस्त थे—या शायद दो दिल, जो कभी एक धड़कन की तरह साथ रहे, लेकिन समय ने उन्हें अलग जुड़वाँ पर खड़ा कर दिया।

प्यार अधूरा था, पर दिलों में ज़िंदा।

इसीलिए यह दास्तान अधूरी होकर भी खूबसूरत है।

कभी-कभी पूरा न होना भी अपनी जगह एक कहानी बन जाता है।

दो दिल, दो रास्ते… और एक अधूरी दास्तान, जो हमेशा याद रहेगी।

 

कहानी के पात्रों की तालिका

पात्र का नामकहानी में भूमिकाविशेषताएँ कहानी में योगदान
आरवमुख्य पुरुषपात्र शांत, सचेत, कम बोलने वाला, भावुक कहानी का भावुक आधार, प्रिया के प्रति अनकहा प्रेम
प्रियामुख्य महिलापात्र खुशमिजाज, सपनीली, महत्वाकांक्षी कहानी की प्रेरणा, सपने और संबंधों के बीच का संघर्ष
लाइब्रेरी अंकल (शर्मा जी)सहायक पात्रपहली मुलाकात का स्थान बनाने में भूमिका
नेहा (प्रिया की दोस्त)सहायक पात्रसलाहकार, प्रिया की समर्थक प्रिया को विदेश जाने के फैसले में मदद करती है
कबीर (आरव का दोस्त)सहायक पात्रव्यावहारिक और समझदार आरव को अपनी भावनाएँ समझने में मदद करता है

Leave a Comment