लापता मोहरों की पहेली — रहस्य कहानी

लापता मोहरों की पहेली — रहस्य कहानी

लापता मोहरों

शहर के पुराने हिस्से में एक छोटा-सा पोस्टकार्ड था, जिसे लोग प्यार से “पुरानी डाकशाला” कहते थे। यह पोस्टकार्ड अब आधुनिक मशीनों से तो नहीं चलता था, लेकिन यहाँ की पुरानी लकड़ी की डंठल, पीतल की घंटी और कागज़ों की खुशबू में एक अजीब-सी गर्मी थी। इस पोस्टकार्ड का सबसे मेहनती कर्मचारी था—अंशु, एक शांत स्वभाव का, ईमानदार और सूझ-बूझ वाला युवक।

एक सुबह, जब अंशु पोस्टकार्ड में पहुँचा, तो उसे सभी कर्मचारी बेचैन दिखे। सबके चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं। पोस्टकार्ड के अधीक्षक श्री महाजन ने उसे देखते ही कहा,

“अंशु, बड़ी मुसीबत हो गई है। हमारी सरकारी मुहरें—तीनों—रातोंरात गायब हो गई हैं!”

ये तीनों मुहरें बेहद जरूरी थीं—एक रजिस्ट्री के लिए, एक स्पीड पोस्ट के लिए, और एक गोपनीय पोस्ट के लिए। इन मुहरों के बिना पोस्टकार्ड का काम एक दिन भी नहीं चल सकता था। साथ ही, उनका गायब होना सुरक्षा उल्लंघन था, जिसकी सख्त जांच होनी तय थी।

अंशु ने तुरंत मुहरों के कमरे की जांच शुरू की। दरवाजे पर ताला ज्यों का त्यों था, खिड़कियां भी अंदर से बंद थी। यह देखकर अंशु के मन में पहला संदेह अलगाव—“यदि दरवाज़ा और खिड़कियां बंद हैं, तो अंदर कोई आया कैसे?”

चांद मिनट बाद ही खबर फैल गई कि जिले के बड़े अधिकारी अगली सुबह निरीक्षण करने आ रहे हैं। अब सब पर दबाव और बढ़ गया था। महाजन जी ने अंशु से कहा,

“तुम ही कुछ कर सकते हो, अंशु। तुम्हारी नज़र तेज है, दिमाग शांत है। पता लगाओ कि मुहरें कहाँ गईं।”

पहला सुराग—अधूरी छाप

अंशु ने सबसे पहले मेज पर रखे रजिस्टर को देखा। उस पर एक सुबह-सी मुहर की छाप थी, जैसे किसी ने जल्दबाजी में मुहर उठाई हो और हासिल ठीक से नहीं लगी हो। यह देखकर उसे शक हुआ कि चोरी अचानक और बिना तैयारी के नहीं हुई। किसी ने मुहर उठाई, इस्तेमाल की, फिर शायद छिपा की जल्दी में गलती कर बैठा।

अंशु ने छाप के निशान को ध्यान से देखा—यह गोपनीय दस्तावेज वाली मुहर थी। यानी चोरी का मकसद सिर्फ पूछताछ नहीं, कुछ बड़ा भी हो सकता था।

दूसरा सुझाव—फर्श पर रेत के कण

फर्श पर हल्के-से रेत के कण पड़े थे। पुरानी डाकशाला में रेत का होना आम नहीं था, क्योंकि यहाँ पत्थर की टाइल रोज साफ की जाती थी। यह रेत शायद बाहर से आई थी।

“यह रेत किसकी है?” अंशु ने खुद से पूछा।

संभावना थी कि कोई ऐसा व्यक्ति आया जो रोज पोस्ट ऑफिस में नहीं आता।

तीसरा सुझाव—टूटा हुआ पंख

मुहरों वाले कमरे के पास एक मेज पर एक गिरी हुई पंखों का टुकड़ा पड़ा था। पोस्ट ऑफिस में पक्षियों का आना नामुमकिन था, क्योंकि सारे दरवाजे-खिड़कियाँ आमतौर पर बंद रहते थे। अंशु को याद आया कि पास ही रहने वाले एक बुजुर्ग स्टाम्प कलेक्टर, रघुवीर अंकल, अक्सर अपने पालतू कबूतरों के साथ घूमते आते थे। क्या वे यहाँ आए होंगे?

लेकिन क्या वे चोरी जैसे काम में शामिल हो सकते थे? यह लंबवत उसे शक तो हुआ, पर पूरा भरोसा नहीं हुआ।

अंशु की पड़ताल

अंशु ने सबसे पहले रघुवीर अंकल के घर जाने का फैसला किया। उनके आँगन में रेत बिखरी हुई थी—उसी रंग की, जो पोस्ट ऑफिस में मिली थी।

“चाचा, कल रात आप पोस्ट ऑफिस के पास तो नहीं गए थे?”

रघुवीर अंकल हँस पड़े,

“अरे बेटा, रात को तो मैं जल्दी सो गया था। सुबह-सुबह कबूतरों को दाना देने बाहर आया था।”

अंशु को उनकी आँखों में सच्चाई लगी। उसने कुछ और पूछताछ की, पर कुछ भी शक नहीं लगा। अब अंशु को लगा कि रेत अंकल की वजह से नहीं हो सकती। शायद कोई और था जो रेत वाली जगह से पोस्ट ऑफिस आया था।

शक की नई दिशा—एक डाकिया गायब

डाकघर लौटकर अंशु ने उपस्थिति रजिस्टर देखा। उसमें एक नाम पर ध्यान गया—रोहित, एक नया डाकिया, जो पिछले तीन दिनों से बिना सूचना दिए गायब था। रोहित का स्वभाव थोड़ा चंचल था, लेकिन ऐसा कदम वह उठाएगा, इस पर किसी ने कभी सोचा नहीं था।

अंशु ने सोचा—“क्या रोहित ने मुहरें चुराईं? लेकिन क्यों?”

अंशु रोहित के घर पहुँचा। दरवाज़ा खुला, पर कमरा खाली था। बस कमरे की मिट्टी में वही रेत बिखरी थी! अब मामला साफ होने लगा था।

सच्चाई के करीब

घर की मेज पर एक कागज़ पड़ा था—लिखावट रोहित की थी।

“मैं फँस गया हूँ। किसी ने मुझे मुहरें देने के लिए मजबूर किया। मैं उन्हें छिपाकर रख आया हूँ। मैं डर गया और घर से निकल गया। अगर किसी को ये नोट मिले, तो समझ लेना कि मैं मजबूर था।”

यह ठेकेदार अंशु का दिल धक्क से रह गया। कोई तीसरा व्यक्ति इस चोरी के पीछे था!

सबसे बड़ा सुराग—लाल पाने का धब्बा

नोट के कोने पर लाल पाने का ताज़ा धब्बा था। लाल पाना सिर्फ एक ही व्यक्ति इस्तेमाल करता था—महाजन जी, क्योंकि वे खास स्रोतों पर लाल पाने से हस्ताक्षर करते थे।

अंशु के मन में भारी शक उठा—क्या यह सब अंदर की मिलीभगत थी?

अंतिम टकराव

अंशु ने महाजन जी से अकेले में बात की।

“सर, मुझे यह नोट रोहित के घर मिला। इस पर लाल हासिल का निशान है… ठीक वैसी हासिल, जैसी आपकी मेज पर रहती है।”

महाजन जी पहले तो झूठ बोले रहे, पर जब अंशु ने रेत के कण, मुहर्रिर की अधूरी छाप और रोहित की गुमशुदगी का हल दिया, तो वे टूट गए।

कहानी के पात्रों की तालिका

किरदारकहानी में भूमिकाविवरण
अंशु मुख्य पात्र(जांचकर्ता) ईमानदार,शांत और तेज दिमाग वाला डाकघर का कर्मचारी जो रहस्य सुलझाता है।
श्री महाजन डाकघरअधीक्षकदबाव और डर के कारण चोरी में शामिल हुए, बाद में सच्चाई बताते हैं।
रोहितनया डाकियामुहर्रिरें छुपा पर मजबूर किया गया, बाद में गायब पाया जाता है।
रघुवीरअंकल स्टाम्प कलेक्टरसुराग के रूप में सामने आते हैं, लेकिन निर्दोष साबित होते हैं।
असली गिरोहविरोधी पात्रमुहर्रिरों का दुरुपयोग करने के लिए पूरी योजना रचता है।

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