वक़्त के संग खो गया कोई

शहर की भीड़ में, शोर के बीच, हर चेहरे पर कुछ न कुछ छिपा होता है—कभी मुस्कान, कभी दर्द और कभी कोई ऐसा राज़, जो वक़्त के साथ धूल की तरह उड़ जाता है। लेकिन कुछ कहानियाँ, चाहे कितनी ही पुरानी क्यों न हों, दिल के किसी कोने में हमेशा ज़िंदा रहते हैं।
यह कहानी आरव और आरोही की है—दो दिलों की, जो वक़्त की धारा में बहते हुए एक मोड़ पर अलग हो गए।
बचपन की गलियों से शुरू हुआ सफ़र
आरव और आरोही एक ही बंधे में बड़े हुए थे। उनके घर आमने-सामने थे, और बचपन से ही एक अजीब-सी दोस्ती उनके बीच पैंशनती चली गई।
आरोही के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती है, और आरव के चेहरे पर थोड़ा-सा संकोच, थोड़ा-सा चुपपन। दोनों की दुनिया अलग थी—
लेकिन दिलों की धड़कनों को दुनिया का फर्क कहाँ समझ आता है।
स्कूल से लौटते समय दोनों घंटों बात करते—
कभी सपने की,
कभी डर की,
और कभी-कभी एक ऐसे भविष्य की, जिसे दोनों ने तो सोचा था, लेकिन कहने की हिम्मत किसी ने नहीं जुटाई।
वक़्त का बदलता रंग
जैसे-जैसे दोनों बड़े हुए, ज़िम्मेदारियाँ भी बड़ी हो गईं।
आरव का परिवार आर्थिक मुश्किलों में डूबा था। पिता की बीमारी और घर की हालत ने उसे जल्दी बड़ा बना दिया।
आरोही का घर ठीक-ठाक था, लेकिन उसके माता-पिता उसकी ज़िंदगी के हर फैसले पर अपनी परछाईं बनाए रखना चाहते थे।
फिर भी दोनों ने एक-दूसरे को नहीं छोड़ा।
आरोही अक्सर छत पर खड़ी होकर आरव को आवाज़ लगाती—
“अरे सुन! कल मिलना मत भूलना!”
और आरव मुस्कुराते हुए कहते—
“तुम रहो बस… मैं कैसे भूल सकता हूँ!”
लेकिन वक़्त कहाँ किसी की सुनता है।
सपने का बोझ
कॉलेज का आख़िरी साल था। आरोही डॉक्टर बनना चाहती थी और आरव इंजीनियरिंग के सपने देखता था।
लेकिन घर की मजबूरी ने उसे नौकरी करने पर मजबूर कर दिया।
वह जानता था कि उसका यह फैसला उनके रिश्ते पर भी असर डालेगा।
एक शाम, जब दोनों पुराने पेड़ के नीचे बैठे थे, आँधी दोपहर-हल्की चल रही थी, पत्ते गिर रहे थे—उसी माहौल में आरव ने कहा—
“आरोही, शायद आगे हम तुम्हें नहीं मिल पाएंगे… नौकरी की वजह से मुझे शहर छोड़ पड़ सकता है।”
आरोही की सिकुड़न नम हो गई।
“तो मैं क्या करूँ, आरव? मैं भी अपनी पढ़ाई छोड़ दूँ क्या?”
“नहीं,” आरव ने धीरे से कहा।
“तुम अपने सपने पूरे करना… मैं बोझ नहीं बनना चाहता।”
और वही था वह पल—जब दोनों के बीच एक अनकही दूरी पैदा हो गई।
दूरी बढ़ती चली गई
आरव नौकरी के लिए दूसरे शहर चला गया।
पहले-पहले फोन पर बातें होती थीं—लंबी बातें, रात भर चलने वाली बातें।
लेकिन धीरे-धीरे ज़िंदगी की पाइपलाइन ने उन बातों के बीच जगह घेर ली।
आरोही की पढ़ाई, आरव की नौकरी…
कभी इंटरनेट दगा दे देता है,
कभी वक़्त।
धीरे-धीरे कॉल कम हुए,
फिर मैसेज भी कम हुए,
और एक दिन—
आरोही का मैसेज आया ही नहीं।
आरव ने सोचा,
“वक़्त है, सब ठीक हो जाएगा।”
लेकिन कई वक़्त वक़्त के साथ ठीक नहीं होतीं—बल्कि खो जाती हैं।
आख़िरी मुलाक़ात
दो साल बाद, आरव शहर लौटा।
दिल में एक उम्मीद थी—
कि शायद आरोही मिलेगी,
शायद वही पुरानी मुस्कान लेकर कहेगी—
“कहाँ था तुम?”
लेकिन वक़्त उसे एक और सच्चाई दिखाने वाला था।
वह इंतज़ार में लाया,
आरोही के घर के बाहर रुककर देखा—
दरवाज़े पर सजी लाइटें,
महिलाओं का शोर,
और घर की दहलीज़ पर एक मंडप।
आरव का दिल बैठ गया।
उसने पड़ोसन से पूछा—
“कौन-सी पूजा है?”
वे मुस्कुराए—
“पूजा नहीं बेटा, आरोही की शादी है… आज ही।”
उस पल आरव को लगा जैसे उसकी छाती में किसी ने पत्थर रख दिया हो।
पैर भारी हो गए, सांसें धीमी।
वह एक कदम बढ़ा भी नहीं पाया।
उसे डर था—
कि कहीं आरोही उसे देखकर पलट न जाए,
कहीं उसके सपने खतरे में न पड़ जाएं,
या फिर शायद वह उसे देखकर… पहचान भी न पाए।
आरव वापस मुड़ गया।
वह उस पेड़ के पास गया, जहाँ वे आख़िरी बार बैठे थे।
पेड़ अब बूढ़ा हो चुका था,
ठीक उसी तरह जैसे वह रिश्ता—
संग खो गया कोई
आज कई साल बीत चुके हैं।
आरव अपनी नौकरी में सफल है,
जीवन में स्थिर है—
पर दिल के किसी कोने में एक खालीपन हमेशा बना रहता है।
कभी-कभी रात में वह पुराना पेड़ याद आता है,
आरोही की हँसी याद आती है,
और वह सवाल भी—
“क्या वक़्त उन्हें अलग न करता,
तो क्या आज कहानी अलग होती?”
शायद हाँ,
शायद नहीं।
लेकिन इतना ज़रूर है—
कि कुछ लोग ज़िंदगी में आकर इतने गहरे उतर जाते हैं,
कि उनके जाने के बाद भी
यादों का शोर कभी कम नहीं होता।
आरव के लिए…
आरोही सिर्फ खोई हुई मोहब्बत नहीं थी,
बल्कि एक ऐसी याद थी—
जो वक़्त के संग तो चली गई,
पर दिल से कभी न गई।
कहानी के पात्रों की तालिका
| पात्र का नाम | कहानी में भूमिका | विवरण |
|---|---|---|
| आरव | मुख्य पात्र शांत, जिम्मेदार, भावुक | युवक। परिवार की मजबूरियों के कारण अपने सपनों और संबंधों का त्याग करता है। |
| आरोही | मुख्य महिला पात्र खुशमिज़ाज, | सपनों से भरी लड़की। डॉक्टर बनने की राह में आगे बढ़ती है, लेकिन आरव के साथ उसका रिश्ता समय के साथ दूर हो जाता है। आरव का परिवार सहायक पात्र आर्थिक समस्याओं से जूझता परिवार, जो आरव की जिम्मेदार का कारण बनता है। |
| आरोही के माता-पिता | सहायक पात्र | अपने दायित्वों में सख्त, जो आरोही की शादी व भविष्य को अपनी सोच से तय करते हैं। |
| पड़ोसन | छोटी भूमिका | आरव को आरोही की शादी की जानकारी देती है। |
| पुराना पेड़ आसन्न पात्र | आरव और आरोही की यादों का गवाह, | कहानी के भावनात्मक मोड़ का प्रतीक। |