शापित जंगल की पुकार – एक जंगल की कहानी

अंधेरा जब भी धरती पर उतरता है, कुछ जगहें अपनी असली पहचान दिखाती हैं। पहाड़ों के बीच फैला काला-वन ऐसा ही एक जंगल था। गाँव के बुजुर्ग हमेशा कहते थे—
“जब रात गहरी हो जाए, तो उस जंगल से आती पुकार को कभी मत सुनना… वरना लौट कर नहीं आओगे।”
लेकिन सच क्या था, ये कोई नहीं जानता था।
गाँव और रहस्यमय जंगल
कथा शुरू होती है शिवपुर गाँव से, जहाँ लोग मेहनती और शांत स्वभाव के थे। गाँव के ठीक पीछे था विशाल काला-वन, जिसके चारों ओर धुंध हमेशा मंदराती रहती है। दिन में भी जंगल के भीतर सूरज की रोशनी मुश्किल से पहुँचती। लोग मानते थे कि जंगल में एक प्राचीन श्राप छिपा है।
गाँव के बुजुर्ग रघुनाथ काका हर किसी को चेतावनी देते—
“जंगल में कोई है… जो इंसानों की आवाज़ में पुकारता है। उस आवाज़ को सुनते ही इंसान का दिमाग उसका नहीं रहता।”
लेकिन आज के युवा इसे बस कहानी मानते थे।
चार दोस्तों की भूल
गाँव के चार दोस्त—आरव, वसुंधरा, मानवी और करण—काफी उत्साही थे। उन्हें रोमांच पसंद था। एक दिन जंगल के पास से लौटते समय उन्हें अंदर से बहुत धीमी सी आवाज़ सुनाई दी—
“मदद… कोई है? मुझे बचाओ…”
वसुंधरा बोली, “शायद कोई व्यक्ति फँसा है, हमें देखना चाहिए।”
करण ने तुरंत कहा, “ये धोखा हो सकता है। काका ने ऐसे ही आवाज़ों के बारे में कहा था।”
पर आरव ने हंसते हुए कहा, “डरना छोड़ो। ये सब अंधविश्वास है।”
बहुत बहस के बाद उन्होंने फैसला लिया कि जंगल में थोड़ी दूरी तक जाकर देखते हैं।
जंगल का अंतरंग हिस्सा
जैसे ही चारों ओर जंगल में घुसे, माहौल बदल गया। हवा बहुत ठंडी थी, पेड़ अजीब तरह से सरसराते थे। लगता था जैसे कोई उनका पीछा कर रहा हो।
जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते, धुंधला गहरा होती जा रही थी।
अचानक वही पुकार फिर सुनाई दी—
“आरव… इधर आओ…”
सबके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उन्होंने एक-दूसरे को देखा। वसुंधरा कांपते हुए बोली,
“ये आवाज़ हमारा नाम कैसे डालती है?”
करण डर गया, “हमें वापस लौटना चाहिए!”
लेकिन उस आवाज़ में कुछ ऐसा था कि आरव जैसे उभर आया।
वह बोला, “कोई है जिनके जान खतरे में है। हमें मदद करनी चाहिए।”
और वह आगे बढ़ने लगा।
श्राप की सच्चाई
तीनों दोस्त उसके पीछे भागे। थोड़ी दूरी पर उन्हें एक कामयाब प्राचीन मंदिर दिखाई दिया। उसके सामने नियति जैसा दीप और टूटी घंटियाँ पड़ी थीं।
रघुनाथ काका की बातें याद आईं—
“इस मंदिर में कभी एक साध्वी रहती थी, जिसे काला जादू करने वाले तांत्रिक ने मार दिया था। मरते समय उसने गांववालों की रक्षा के लिए तांत्रिक को श्राप दिया। पर टकराव के कारण दोनों की आत्माएँ जंगल में बंध गईं—एक रक्षक आत्मा, एक दुष्ट आत्मा। दुष्ट आत्मा पुकारने वाले लोगों को अंदर खींचती है…”
अब उन्हें एहसास हुआ कि वे किस जाल में फँस चुके हैं।
आरव का गायब होना
जैसे ही वे मंदिर के पास पहुँचे, धुंधला अचानक और भारी हो गई।
और फिर… आरव गायब।
वसुंधरा चीख ___, “आरव! तुम कहाँ हो?”
लेकिन जवाब में फिर वही दहला देने वाली आवाज़ आई—
“मैं यहाँ हूँ… आओ…”
आवाज अब और भी पास थी। ऐसा लगता था कि कहीं ज़मीन के नीचे से आ रही हो।
सच्चाई का सामना
तीनों मंदिर में घुसे। अंदर का दृश्य भयानक था—दीवारों पर पुराने तंत्र-मंत्र के निशान, बीच में सूखा रक्त, और कोने में पड़ी टूटी मूर्तियां।
पत्थरों पर एक काला गन्ना था, जैसे किसी ने जमीन को अंदर की ओर खींच लिया हो।
अचानक मानवी ने गड्ढे में देखा और चीख पड़ी—
आवाज़… गड्ढे के भीतर से आ रही थी। लेकिन वो आरव की नहीं थी।
वह आवाज़ थी एक बूढ़ी, खुरदरी, दानवी हँसी की।
“तुम सब अब मेरे हो…”
रक्षक आत्मा का प्रकट होना
तभी मंदिर की घंटियाँ खुद-ब-खुद बजने लगीं। भीतर एक सफेद रोशनी फैल।
एक रक्षक आत्मा प्रकट हुई—शांत, तेज और पीली आभा वाली।
उसने कहा,
“तुम बच्चों, मेरी सीमा में कैसे आ गए? यह जंगल श्रापित है। दुष्ट आत्मा हर सौ साल में जागती है और पुकार कर लोगों को फँसाती है।”
वसुंधरा रोते हुए बोली, “कृपया आरव को बचा लें!”
आत्मा ने कहा, “यदि तुम सब अपने दिल में सच्चा साहस रखो तो उसे तैनात किया जा सकता है। लेकिन समय बहुत कम है।”
अंतिम संघर्ष
तीनों ने रक्षक आत्मा के बताए मंत्र को ढके और गड्ढे के चारों ओर खड़े हो गए।
पत्थर से एक काली परछाई उठने लगी—लंबी, टेढ़ी, और खतरनाक।
उस परछाई ने खतरे की आवाज़ में कहा—
“एक को तो मैं ले ही चुका हूँ… तुम बाकी तीनों को भी नहीं छोड़ूँगा!”
हवा तेज़ हो गई। पेड़ जोर से हिलने लगे। मंदिर की मिल कांपने पहुंची।
लेकिन वसुंधरा ने हिम्मत नहीं छोड़ी। वह चीखकर बोली—
“हम डरे नहीं हैं! आरव को छोड़ दो!”
मंत्र की शक्ति बढ़ने लगी। रोशनी तेज़ होती गई।
काली परछाई धीरे-धीरे कमजोर हुई और अंत में एक दहाड़ के साथ हवा में विलीन हो गई।
रोशनी बुझते ही गड्ढे से आरव बाहर गिरा—बेहोश, पर जीवित।
कहानी में प्रयोग किए गए पात्रों की तालिका
| पात्र का नाम | भूमिका / कार्य | विवरण |
|---|---|---|
| आरव | मुख्य पात्र | जिज्ञासु और बहादुर लड़का, जो जंगल की पुकार का पीछा करता है और फँस जाता है। |
| वसुंधरा | समूह की समझदार | सदस्य डर के बावजूद हिम्मत दिखाती है, आरव को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी है। |
| मानवी | भावुक लेकिन बहादुर | लड़की रहस्यमय घटनाओं से सबसे ज्यादा डरती है, पर आखिरी समय में साहस दिखाती है। |
| करण | सतर्क और तार्किक | शुरुआत से ही जंगल में न जाने की सलाह देता है, पर दोस्तों को बचाने के लिए आगे बढ़ता है। |
| रघुनाथ | काका बुजुर्ग सलाहकार | गाँव के बुजुर्ग जो बच्चों को शापित जंगल के बारे में चेतावनी देते हैं। |
| बुरी | आत्मा प्रतिपक्षी शापित | आत्मा जो इंसानी आवाज़ों की नकल कर जंगल में लोगों को फँसाती है। |
| रक्षक | आत्मा संरक्षक | प्राचीन साध्वी की आत्मा, जो बच्चों की मदद करती है और बुरी आत्मा से लड़ती है। |